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उद्यानिक फसलों में ह्यूमिक एसिड से होने वाले अप्रत्याशित लाभ एवं जानें सही प्रयोग विधि

उद्यानिक फसलों में ह्यूमिक एसिड से होने वाले अप्रत्याशित लाभ एवं जानें सही प्रयोग विधि

हानिकारक रसायन युक्त उर्वरकों के प्रयोग से मिट्टी की उर्वरक क्षमता कम होने लगती है। जिसका सीधा असर फसलों की पैदावार पर होता है। मिट्टी की उर्वरक क्षमता को बढ़ाना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। मिट्टी की संरचना में सुधार करने एवं उर्वरक क्षमता बढ़ाने के लिए ह्यूमिक एसिड किसी वरदान से कम नहीं है। बाजार में मिलने वाला ह्यूमिक एसिड असल में पोटेशियम हृमेट होता है, जिसे ह्यूमिक एसिड पर कास्टिक पोटाश की क्रिया के द्वारा तैयार किया जाता है। पोटेशियम ह्यूमेट से फसलों पर किसी तरह का प्रतिकूल असर नहीं होता है। ह्युमिक एसिड जैविक पदार्थ जैसे, लिग्निएट,पीट एवं मृदा समूह पदार्थो का सदस्य है।

यह पौधों में एवं मिट्टी को पोषण एवं संरचना सुधारने में सहायक की भूमिका निभाता है। ह्यूमिक एसिड का प्रयोग जैविक खेती में भी किया जा सकता है। ह्यूमिक एसिड से होने वाले लाभ के बारे में अभी तक बहुत कम किसानों को पता है, जबकि पौधों के वानस्पतिक वृद्धि की अवस्था में इसके प्रयोग से अप्रत्याशित लाभ मिलता है । ह्यूमिक एसिड कृषि में एक महत्वपूर्ण घटक है, जो कई प्रकार के लाभ प्रदान करता है जो मिट्टी के स्वास्थ्य, पौधों की वृद्धि और समग्र फसल उत्पादकता में योगदान देता है। ह्यूमिक एसिड एक प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला कार्बनिक पदार्थ है जो पौधे और पशु पदार्थों के क्षय से प्राप्त होता है। यह ह्यूमस का एक प्रमुख घटक है, मिट्टी का कार्बनिक अंश, जो अपने गहरे रंग और समृद्ध उर्वरता के लिए जाना जाता है। ह्यूमिक एसिड के प्रमुख स्रोतों में विघटित पीट, लिग्नाइट कोयला और मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ शामिल हैं। ह्यूमिक एसिड की रासायनिक संरचना को समझना महत्वपूर्ण है, जो विभिन्न कार्यात्मक समूहों, जैसे कि फेनोलिक, कार्बोक्जिलिक और क्विनोन समूहों से बना है।

ह्यूमिक एसिड की संरचना

ह्यूमिक एसिड एक बहु-उपयोगी खनिज पदार्थ है। इसके प्रयोग से बंजर भूमि को भी उपजाऊ बनाया जा सकता है। यह मिट्टी में नमी बनाए रखने में सहायक है। यह मिट्टी में खाद को अच्छी तरह घोल कर पौधों तक पहुंचता है। इसके अलावा यह नाइट्रोजन एवं आयरन को मिट्टी में जोड़े रखता है।

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ह्यूमिक एसिड मैक्रोमोलेक्यूल्स का एक जटिल मिश्रण है, और इसकी संरचना स्रोत के आधार पर भिन्न भिन्न हो सकती है। इसमें आमतौर पर ह्यूमिक पदार्थ होते हैं, जिन्हें मोटे तौर पर फुल्विक एसिड, ह्यूमिक एसिड और हाइमाटोमेलैनिक एसिड में वर्गीकृत किया जाता है। फुल्विक एसिड सबसे छोटा आणविक घटक है, इसके बाद ह्यूमिक एसिड है, जबकि हाइमाटोमेलैनिक एसिड सबसे बड़ा है। ह्यूमिक एसिड की जटिल संरचना मिट्टी और पौधों के बीच महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसकी उच्च धनायन विनिमय क्षमता (सीईसी) इसे पौधों की जड़ों के साथ आवश्यक पोषक तत्वों को बनाए रखने और आदान-प्रदान करने की अनुमति देती है, जिससे मिट्टी में पोषक तत्वों की उपलब्धता को बढ़ावा मिलता है।

ह्यूमिक एसिड के प्रयोग से क्या होता है?

मृदा कंडीशनर: ह्यूमिक एसिड मिट्टी कंडीशनर के रूप में कार्य करता है, मिट्टी की संरचना को बढ़ाता है और जल धारण को बढ़ावा देता है। मिट्टी के कणों के साथ कॉम्प्लेक्स बनाने की इसकी क्षमता मिट्टी के वातन और जल निकासी में सुधार करता है।

पोषक तत्वों का अवशोषण

ह्यूमिक एसिड के महत्वपूर्ण लाभों में से एक पोषक तत्वों के अवशोषण में इसकी भूमिका है। यह आवश्यक खनिजों को संश्लेषित करता है, जिससे वे पौधों के लिए अधिक उपलब्ध होते हैं। यह, बदले में, फसलों द्वारा पोषक तत्वों के ग्रहण और उपयोग में सुधार करता है।

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जड़ विकास को उत्तेजित करना

ह्यूमिक एसिड जड़ विकास को उत्तेजित करता है, जिससे जड़ प्रणाली अधिक व्यापक और मजबूत होती है। यह बढ़ा हुआ जड़ द्रव्यमान पौधे की मिट्टी से पानी और पोषक तत्वों तक पहुंचने की क्षमता को बढ़ाता है।

उन्नत बीज अंकुरण

जब बीज उपचार के रूप में उपयोग किया जाता है, तो ह्यूमिक एसिड अंकुरण दर और अंकुर शक्ति में सुधार करता है। इसका कारण बीज के आसपास की मिट्टी के भौतिक और रासायनिक गुणों पर इसका प्रभाव है।

जैविक गतिविधि

ह्यूमिक एसिड मिट्टी में माइक्रोबियल गतिविधि को बढ़ाता है। लाभकारी सूक्ष्मजीव ह्यूमिक पदार्थों की उपस्थिति में बहुत अच्छे से पनपते हैं, जो कार्बनिक पदार्थों के टूटने और पोषक तत्वों की उपलब्धता को बढ़ाने में सहयोग करते हैं।

ह्यूमिक एसिड के लाभ बेहतर मिट्टी की उर्वरता

ह्यूमिक एसिड का उपयोग पोषक तत्वों का भंडार प्रदान करके और माइक्रोबियल गतिविधि के लिए अनुकूल वातावरण बनाकर मिट्टी की उर्वरता को समृद्ध करता है। यह निरंतर और बेहतर फसल उत्पादन में योगदान देता है।

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पोषक तत्वों की लीचिंग में कमी

ह्यूमिक एसिड जड़ क्षेत्र में पोषक तत्वों को बांध कर पोषक तत्वों की लीचिंग को कम करने में मदद करता है, उन्हें बारिश या सिंचाई से धुलने से रोकता है। इससे न केवल पौधों के स्वास्थ्य को लाभ होता है बल्कि पर्यावरणीय प्रभाव भी कम होता है।

जल उपयोग दक्षता

ह्यूमिक एसिड से उपचारित मिट्टी की जल धारण क्षमता बढ़ने से जल उपयोग दक्षता में वृद्धि होती है। यह पानी की कमी या अनियमित वर्षा पैटर्न का सामना करने वाले क्षेत्रों में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।

तनाव सहनशीलता

ह्यूमिक एसिड से उपचारित पौधों में सूखे और लवणता सहित विभिन्न तनाव कारकों के प्रति सहनशीलता बढ़ जाती है। बेहतर जड़ प्रणाली और पोषक तत्वों का अवशोषण पौधे की चुनौतीपूर्ण पर्यावरणीय परिस्थितियों का सामना करने की क्षमता में योगदान देता है।

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पर्यावरणीय स्थिरता

ह्यूमिक एसिड का उपयोग टिकाऊ कृषि पद्धतियों के अनुरूप है। मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार और सिंथेटिक उर्वरकों की आवश्यकता को कम करके, यह पर्यावरण के अनुकूल खेती के तरीकों का समर्थन करता है।

अन्य इनपुट के साथ अनुकूलता

ह्यूमिक एसिड विभिन्न उर्वरकों और कृषि रसायनों के साथ अनुकूल है। इसकी बहुमुखी प्रतिभा किसानों को इसे अपनी मौजूदा कृषि पद्धतियों में सहजता से एकीकृत करने की अनुमति देती है।

ह्यूमिक एसिड तैयार करने की विधि

  • इसे तैयार करने के लिए 2 वर्ष पुराने गोबर के उपले या कंडे, 25 से 30 लीटर पानी एवं करीब 50 लीटर की क्षमता वाले ड्रम की आवश्यकता होती है।
  • इसे तैयार करने के लिए ड्रम में सबसे पहले गोबर के उपले एवं कंडे भरें।
  • इसके बाद ड्रम में 25 से 30 लीटर पानी भर कर 7 दिनों तक ढक कर रखें।
  • 7 दिनों बाद ड्रम के पानी गहरे लाल से भूरे रंग में बदल जाएगा।
  • इसके बाद ड्रम से सभी कंडों को निकाल कर पानी को किसी कपड़े से छान लें।
  • इस पानी को ह्यूमिक एसिड के तौर पर प्रयोग करें।

ह्यूमिक एसिड का प्रयोग कैसे करें?

  • ड्रम में तैयार किए गए पानी को मिट्टी में मिलाएं।
  • पौधों की रोपाई से पहले जड़ों को इसमें डुबो कर रखें।
  • कीटनाशक के साथ मिला कर फसलों पर छिड़काव करें।
  • रासायनिक उर्वरकों में मिला कर भी प्रयोग कर सकते हैं।
  • ड्रिप सिंचाई के साथ ही इसका प्रयोग किया जा सकता है।

उपयोग की विधि

ह्यूमिक एसिड 12% W / W का प्रयोग निम्नलिखित तरीके से किया जा सकता है

अ. मिट्टी में प्रयोग करने की विधि

एक लीटर ह्यूमिक एसिड 12% W / W एक एकड़ के लिए पर्याप्त है। इसका उपयोग अकेले या अन्य उर्वरक के साथ या ड्रिप सिंचाई के माध्यम से किया जा सकता है।

ब. पर्णीय छिड़काव

फूलों आने से पहले या सक्रिय वानस्पतिक अवस्था में , सुबह या शाम को सभी फसलों के लिए मासिक अंतराल पर ह्यूमिक एसिड @ 2-3 मिलीलीटर / लीटर पानी का छिड़काव कर सकते है I

स. बीजोपचार

बुवाई से कम से कम 1 घंटा पहले पर्याप्त मात्रा में जल में ह्यूमिक एसिड @ 10 मिली / किलोग्राम बीज के बीज को भिगो देंI

सारांश

सारांश में, ह्यूमिक एसिड आधुनिक कृषि में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो कई फायदे प्रदान करता है जो टिकाऊ और कुशल फसल उत्पादन में योगदान करते हैं। मिट्टी की उर्वरता और पोषक तत्वों के अवशोषण को बढ़ाने से लेकर पौधों में तनाव सहनशीलता को बढ़ावा देने तक, ह्यूमिक एसिड के प्रयोग विविध और प्रभावशाली हैं। जैसे-जैसे कृषि पद्धतियों का विकास जारी है, मिट्टी के स्वास्थ्य को अनुकूलित करने और मजबूत पौधों के विकास को बढ़ावा देने में ह्यूमिक एसिड का महत्व और भी अधिक स्पष्ट होने की संभावना है। सस्तुती मात्रा से अधिक इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए।

जैविक खेती का प्रमुख आधार ट्राइकोडर्मा क्या है ? इसके प्रयोग की विधि एवं लाभ क्या क्या है ?

जैविक खेती का प्रमुख आधार ट्राइकोडर्मा क्या है ? इसके प्रयोग की विधि एवं लाभ क्या क्या है ?

ट्राइकोडर्मा  एक भिन्न फफूँद है, जो मिट्टी में पाया जाता है। यह जैविक फफूँदीनाशक है, जो मिट्टी एवं बीजों में पाये जाने वाले हानिकारक फफूँदों  का नाश कर पौधे को स्वस्थ एवं निरोग बनाता है ।ट्राइकोडर्मा के कई उपभेदों को पौधों के कवक रोगों के खिलाफ जैव नियंत्रण एजेंटों के रूप में विकसित किया गया है। ट्राइकोडर्मा पौधों में रोगों को कई तरह से प्रबंधित करता है यथा एंटीबायोसिस, परजीवीवाद, मेजबान-पौधे के प्रतिरोध को प्रेरित करना और प्रतिस्पर्धा शामिल हैं।  अधिकांश जैव नियंत्रण एजेंट टी. एस्परेलम, टी. हार्ज़ियनम, टी. विराइड, और टी. हैमैटम प्रजातियों के हैं।  बायोकंट्रोल एजेंट आम तौर पर जड़ की सतह पर अपने प्राकृतिक आवास में बढ़ता है, और इसलिए विशेष रूप से जड़ रोग को प्रभावित करता है, लेकिन यह पर्ण रोगों के खिलाफ भी प्रभावी हो सकता है। ट्राइकोडर्मा से क्यों करते है ? , ट्राइकोडर्मा से कैसे करते है? ट्राइकोडर्मा से क्या न करें ? ट्राइकोडर्मा से क्यों न करें? इस तरह के तमाम - तमाम प्रश्न बहुधा पूछे जाते है , जिसका जबाब बहुत कम लोगों के पास  होता है ।आप के इन प्रश्नों का जबाब यहाँ देने का प्रयास किया गया है I

Trichoderma is a genus of Kingdom Mycota in the family Hypocreaceae, that is present in all soils, where they are the most prevalent culturable fungi. Many species in this genus can be characterized as opportunistic avirulent plant symbionts. Trichoderma act as biological control agents widely used against many plant pathogens, mainly soil-borne fungi. Different species of Trichoderma considered being very beneficial for different levels of life. Main features to attack and suppress the growth of plant pathogens and it improves overall plant growth. It can produce different secondary metabolites and readily activates other fungi, producing very significant enzymes, such as chitinase, proteases, and β-1,3-glucanase, inducing plant defense, systemic resistance, and strong and active competition against plant pathogens. It is a party to an important detoxification process to reduce the toxicity secreted by plant pathogens. It is therefore necessary to clarify the significance of Trichoderma in the control of plant diseases that results in improvements in sustainable agriculture. Trichoderma act as biological control agents (BCAs) in sustainable agriculture through reducing plant diseases and increasing field production. Trichoderma can combine several advantages in one product – the control of different plant diseases, enhancement of plant growth, and the provision of a clean environment for the benefit of sustainable agriculture.

ट्राइकोडर्मा से क्या करते है ?

 •बीज का शोधन ट्राइकोडर्मा  से करें ? 

• पौधशाला की मिट्टी का शोधन ट्राइकोडर्मा  से करें ।

• पौध के जड़ को ट्राइकोडर्मा  के घोल में डुबोकर लगायें ।

• पौध रोपण के समय खेत में प्रर्याप्त मात्रा में ट्राइकोडर्मा  का प्रयोग कार्बनिक खादों जैसे, कम्पोस्ट, खल्ली, के साथ मिलाकर करें । 

• खड़ी फसल में पौधों के जड़ क्षेत्र के पास ट्राइकोडर्मा  का घोल डालें । 

• खेत में हरी खाद का अधिक से अधिक प्रयोग करें । 

• खेत में प्रर्याप्त नमी बनाये रखें । 

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ट्राइकोडर्मा से क्यों करते है ?

• मृदा जनित रोगेां की रोकथाम का सफल एवं प्रभावकारी तरीका है । 

• इससे आर्द्रगलन, उकठा, जड़-सड़न, तना सड़न , कालर राट, फल-सड़न जैसी बीमारिया नियंत्रित होती है । 

• जैविक विधि में ट्राइकोडर्मा सबसे प्रभावकारी एवं सफल प्रयोग होनेवाला रोग नियंत्रक है । 

• बीज के अंकुरण के समय ट्राइकोडर्मा  बीज में हानिकारक फफूँद के आक्रमण तथा प्रभाव को रोक देता है और बीजों को मरने से बचाता है । 

• मृदा जनित बीमारियों की रोकथाम फफॅुदनाशक से पूर्णतया संभव नहीं है । 

• यह भूमि में उपलब्ध पौधों, घासों एवं अन्य फसल अवषेषों को सड़ा- गलाकर जैविक खाद में परिवर्तित करने में सहायक होता है । 

• ट्राइकोडर्मा केंचुए की खाद या किसी भी कार्बनिक खाद तथा हल्की नमी में बहुत अच्छा काम करता है । 

• यह पौधे की अच्छी बढ़वार हेतुं वृद्धि नियामक की तरह भी काम करता है । 

• इसका प्रभाव मिट्टी में सालों साल तक बना रहता है, तथा रोग को रोकता है । 

• यह पर्यावरण को कोई हानि नही पहुचाता है।

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ट्राइकोडर्मा से कैसे करते है ?

• ट्राइकोडर्मा  का 6-10 ग्राम पाउडर प्रति किलो बीज की दर से मिलाकर बीजों को शोधित करें । 

• पौधषाला में नीम की खली, केचुआँ की खाद या पर्याप्त सड़ी गोबर की खाद मिलाकर ट्राइकोडर्मा 10-25 ग्राम प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से मिट्टी शोधित करें । 

• खेत में सनई या ढ़ैचा पलटने के बाद कम से कम 5 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से ट्राइकोडर्मा पाउडर का बुरकाव करें ।

• खेत में वर्मी कम्पोस्ट या खली या गोबर की खाद डालने के समय उसमें ट्राइकोडर्मा अच्छी तरह मिलाकर डालें । 

• ट्राइकोडर्मा 10 ग्राम एवं 100 ग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति लीटर पानी में घोलकर पौध के जड़ को डुबोकर रोपाई करें । 

• खड़ी फसल में ट्राइकोडर्मा 10 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल कर जड़ के पास डालें।

ट्राइकोडर्मा से क्या न करें?

• ट्राइकोडर्मा एवं फफूँदनाशकों का प्रयोग एक साथ न करें । 

• सूखी मिट्टी में ट्राइकोडर्मा का प्रयोग न करें । 

• तेज धूप में शोधित बीज न रखें 

• ट्राइकोडर्मा मिश्रित कार्बनिक खाद को न रखें । 

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ट्राइकोडर्मा से क्यों न करें ?

• मिट्टी में रासायनिक दवाओं का प्रयोग तत्कालिक तथा किसी एक फफूॅंद विशेष के लिए होता है । 

• ये दवायें मिट्टी में पहले से विद्यमान ट्राइकोडर्मा एवं अन्य फायदेमंद जैविक कारकों को मार देती हैं । 

• खेत में नमी एवं पर्याप्त कार्बनिक खाद की कमी से ट्राइकोडर्मा का विकास नहीं होता और मर जाता है । 

• ट्राइकोडर्मा तेज धूप में मरने लगता है।


Dr AK Singh
डॉ एसके सिंह प्रोफेसर (प्लांट पैथोलॉजी) एवं विभागाध्यक्ष,
पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी,
प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना,डॉ राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा-848 125, समस्तीपुर,बिहार
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